________________
संधि प्रकरण ८ १ प्राकृतमा जूदां जूदां ये 'पदोना स्वरोनो संधि थाय छे अने ते पण प्रयोगानुसारे विकल्पे थाय छे:---
स्वरसंधिअ+अ आ-मगह+अहिवई-मगहाहिवई, मगहअहिवई [ मग
धाधिपतिः ]
दंड+अहीसो-दंडाहीसो, दण्डअहीसो दण्डाशिः) अ-आ-आ--विसम+आयवो-विसमायवो,विसमआयवो विषमातपः] आ+अ आरमा+अहीणो-रमाहीणो, रमाअहीणो [ रमाधीनः ] आ+आ-आ----रमा+आरामोरमारामो, रमाआरामो [ रमारामः ] इ+इ-ई -मुणि+इणो-मुणीणो, मुणिइणो [ मुनीनः ] इ+ई-ई-मुणि+ईसरो-मुणीसरो, मुणिईसरो [ मुनीश्वरः ]
दहि+ईसरो--दहीसरो, दहिईसरो [ दधीश्वरः]
१ जे चे पदोना स्वरोमां संधि थवानो छे, ते बेपदो सामासिक होय के असामासिक होय अर्थात् कोई प्रकारे जूदां जदा होवां जाइए. . जेमके; सामासिक-दंड+अहीसो दंडाहीसो, इंडअहीसो ।
असामासिक-दंडस्स+ईसो-६उत्सेसो, दंडस्स ईसो ।
प्राकृत साहित्यमा विशेष करीने सामासिक पदोना स्वरोमां संधि थएलो जणाय छे अने असामासिक पशेमां तो तेनो प्रयोग घणो ज विरल थएलो छे. असामासिक पदोमां संधि करवा जतां धणे ठेकाणे अर्थबोध दुर्लभ थई जाय छे माटे ज असामासिक करतां सामासिक पदोमां संधि-प्रयोगनो प्रचार वधु थएलो लागे छे अने ए अनुसारे अही उदाहरणामां पण सामासिक पदोनी नोंध विशेष करेली छ, कोई ठेकाणे तो फक्त एक ज पदमां पण संधि थएलो छे:----
काहि+इ--काही, काहिद [ करिष्यति ]
वि+इओ-बीओ विडओ [ द्वितीयः] २ जूओ पालिप्र. संधिकल्प नि० ३-० ५८