Book Title: Vruttamuktavali
Author(s): H D Velankar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishtan

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Page 39
________________ पृष्ठ २ ३ ५ ५ १४ ५ ५ ७ ७ 9999 ७ ७ २६ ३५ ३५ ६८ पंक्ति ८ १५ ३२, ३३ २, ३ ४ ४ २२ ३० २३ ३२ १७ १६ २४ ५ ১8 m १२ १३ १ ११ १६ [ १४ ] शुद्धि-पत्र अशुद्धपाठ बाह्यः जगत्य पादनिवृत् 17 घटकाश्च मध्यें से स्कन्धोद्गीती • द्वयात्कं भुलम् ● भुल्लनप (शोभैक) शुद्धपाठ ब्राह्मचः जगत्या पादनिवृत् " षट्कश्च मध्येऽन्ते स्कन्धोप्रोवी 93 बृहस्प ( प ) ते सनो बृहती चतुःशतमुत्कृते तान्यति संभ्याज्ञाप्तेभ्यः 'मतिकृतिः न्यूनाधिकेन ● मध्यत्वात् बृहस्पतिर्वरुण इन्दो विश्वेदेवाः बृहस्पतिमित्रावरुणाविन्द्रो विश्वे 31 बृहस्पत्यन्ते सतोबृहती चतुःशतमुत्कृति: तान्यभिसंव्याप्रेभ्यः 'मभिकृतिः ऊनाधिकेन मध्या देवा देवताः द्वयात्मकं • भुल्लनम् ● भुल्लनमपि सोब्रेक

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