Book Title: Vruttamuktavali
Author(s): H D Velankar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishtan
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तृतीयो गुम्फः तस्मै नमः सच्चिदानन्दरूपाय लोकत्रयीभव्यसाकेतभूपाय सौन्दर्यशोभापराभूतकामाय धाराधरस्तोमधामाभिरामाय योगीन्द्रसन्दोह
चेतोललामाय लीलाकृते राघवेन्द्राय रामाय ।। २६६ ॥ एवमेव जगणैवितानाख्यो दण्डकः ।। स यथा-जयामितसेवक कामितदान विनिर्धं तदेव महीरुहमान
जगत्त्रयपावनसद्गुणगान सदाचरितश्रुतिधर्मविधान, धुरन्धरधीर, दयैकनिधान मुनीन्द्र मनोगतमोदनिदान । जयाङ्ग्रिसरोजनमत्पवमानतनूजनिवेदितसिद्धसमान मनोरथबद्धविनोदवितान जयातुलपुष्पकनामविमान
विराजिकृतस्वपुरप्रतियान दृशं मयि दासजनेऽपि बधान ॥२६७॥ एवमेव भगणैर्वर्तुलाख्यो दण्डकः । स यथा-सेवकरक्षणकर्मविचक्षण भूभरतक्षण
भाविततत्क्षण विक्रमलक्षण लक्षनिकेतन शारदचन्द्रजयैकविशारदवक्त्रविभकविधूततमोभररूपजगर्वचलज्झषकेतन। वामलसन्मिथिलेशसुतावरकल्पलतावलितामरभूरुहसाधुजनावनभूरिकृपामय भव्यदभानुकुलामलभूषण नाशितसत्रिशि
रःखरदूषण राम पते जगदेकगते जय ॥ २९८ ।। एवमेव नगणरचलो नाम दण्डकः । स यथा-रज निरमणरुचिरवदन सकलभुवन
कुशलसदन सुजनशरणचरणकमल क्वचन कलितभुजगशयन करुणलुलितनलिननयन भजनदलितसकलशमल । क्वचन धरणिधरणचतुर निगमनिवहविलसदवन तुरगवदन महिमनिलय समरचलितदनुजदितिज विबुधमनुजसंखदचरित जयसि जगति शमिह कलय ॥ २६९ ॥

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