Book Title: Vruttamuktavali
Author(s): H D Velankar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishtan
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३८ ]
श्रथ मन्दरच्छन्दः
वृत्तमुक्तावल्याम्
दिगमुच्चर मन्दरमुद्धर ।। २६ ।।
यथा - हे भव लालय । पालय पालय । ३० ॥ कमल च्छन्द:
नगरणमवत | कमलमयत ।। ३१ ॥
यथा - भुजगवलय शमिह कलय ।। ३२ ।। श्रथ तीर्णा
चत्वारश्चेद्वक्रा वर्णाः तीर्णाख्यं तच्छन्दो भव्यम् ।। ३३ ।। बाला लोला लीलाशाला ।
यथा--दृष्ट्या दृष्ट्वा पीता हाला ।। ३४ ।। अथ धारि
रं विधेहि लं वधेहि । धारिवृत्तमत्र वित्त ॥ ३५ ॥ यथा - जातभूरिभक्तपक्ष । शम्भुदेव रक्ष रक्ष ॥ ३६॥ नगाणिका
जमुच्चरन् गुरूत्तरम् । नगाणिकामिहानयेः ॥ ३७ ॥ यथा - भवैधना निबन्धना । मृषा जनास्तिधंधना ॥ ३८ ॥
यथा वा
अनोहरम् मनोहरम् । स्थितं व्रजे हरि भजे ॥ ३६ संमोहाच्छन्द:
मान्ते संयुक्ती, वक्रौ चेदुक्तौ । संमोहावृत्तं तत्स्यान्मे वित्तम् ||४०|| यथा - उद्यत्संग्रामं रक्षोभिः कामम् । सद्धर्मारामं वन्दे तं रामम् ॥ ४१ ॥ अथ हारीतवृत्तम्
तादुत्तरं चेद् वक्रद्वयं स्यात् । हारीतवृत्तं तन्मग्नचित्तम् ।। ४२ ।। यथा-देवेश शम्भो दासोऽस्म्यहं भोः । त्वं दासवित्तं त्वय्येव चित्तम् ॥४३॥ श्रथ हंसवृत्तम्
भादुपरिस्थं वत्रयुगं चेत् । हंस इतीदं सन्तनु वृत्तम् ।। ४४ ।। यथा-तद्भवपीडा-हारकमुच्चैः । कृष्णपदाब्जं भावय चेतः ।। ४५ यथा वा-निर्जितकामं लोचनवामम् । दुःखविरामं तं भज रामम् ॥ ४६ ॥
यमकच्छन्दः
द्विलघुतनु नगणमनु । यमकमुरु - धिषण कुरु ॥ ४७

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