Book Title: Vruttamuktavali
Author(s): H D Velankar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishtan
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वृत्तमुक्तावल्याम्
यथा-कुशलकरमुशलधर घूर्णतरनयनवर
दनुजहर मनुजदवदुःखभरहरणकर ! अमलकरकमलवरणीयवरनिकरधर धरणिधरधरणवर वीरवर मनसि चर ॥ २४७ ।।
अथ धवलच्छन्दः
सनिगमलघुगणमुपनय कविवर मुखतः चतुरिह विरचय सुचतुरवर निजसुखतः । तदुपरि सगणमुदिततरमिह कुरु सततं
कलय धवलमिति सुविदितमतिगुणविततम् ॥ २४८ ॥ यथा-अमृतभरितनवजलधरमधुरिमधरणं
समुदितमनसिजशतगतरुचिमदहरणम् । [प्रमुदितसकलविबुधहृदि मतिधृतिकरणं]
भज भज गिरिधरमुपनतबुधजनशरणम् ॥ २४६ ।। अथ शम्भुवृत्तम्
लघुयुग्मं कारय भूयो धारय वक्रद्वन्द्वं सानन्दं भगणं विस्तारय वक्रौ धारय भान्ते धेहि स्वच्छन्दम् । मुनिवक्राखण्डितमुद्यत्पण्डितराजीमध्ये दानीयं
निजचेतस्यानय वृत्तं मानय नाम्ना शम्भुस्थानीयम् ।। २५० ।। यथा-कलकूजितकोकिललोकाकारितदृप्यच्चेतःकन्दर्प
वनवल्लीपुञ्जितभृङ्गीगुञ्जितनश्यद्वीरासन्दर्पम् । सहकारामोदिविसर्पन्मारुतदत्ताकम्पश्रीखण्डं
मधुमेनं मानिनि मुग्धे मानय मानं मुञ्चामुं चण्डम् ॥ २५१ ॥ अथ हरिगीतम्
लघुयुग्ममुच्चर वक्रमुद्धर शुद्ध भाभरतन्मुखं भगणं वितानय वक्रमानय शुद्ध मासय सत्सुखम् । भमथो नियोजय गुं प्रयोजय शुद्धतो नय भं च रं भुजगोदितं हरिगीतमुगिर वृत्त मन्तरसुन्दरम् ॥ २५२ ॥

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