Book Title: Vitragstav
Author(s): Hemchandracharya, Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 10
________________ श्री हेमचन्द्राचार्य अने तेमनुं 'वीतरागस्तव' ___वीतराग स्तव' ए 'कलिकालसर्वज्ञ' तरीके जगविख्यात जैनाचार्य श्री हेमचन्द्राचार्यनी एक भक्तिप्रवण अने प्रसन्न स्तोत्र-रचनानुं नाम छ । व्याकरणशास्त्र, अलंकारशास्त्र, काव्यशास्त्र, तर्कशास्त्र, छंदशास्त्र, शब्दकोषो, पुराणग्रन्थो, काव्यग्रन्थो अने स्तोत्रो - आम केटकेटला विषयो के क्षेत्रोमां आ महान प्रतिभाए पोताना पांडित्यने प्रयोज्युं छे ! एक विद्वान कोइ एक शास्त्रमा पोतानी कलम चलावे अने ते विषयमां तेनो शब्द, तेनुं सर्जन मान्य बने ते समजी शकाय तेम छे; परंतु एक ज विद्वान विद्यानी अनेक शाखाओमां सर्जन करे अने ते सर्जन सैकाओ पछी पण मान्य ज बन्यां रहे ए तो साचे ज अनन्य - अनुपम घटना लागे छ । एमना जीवन-कवनने वर्णवता उपलब्ध - घणा बधा आधारो / संदर्भो जोया वांच्या तपास्या पछी, आ मुद्दे मंथन करीए तो, तेओना आवा सर्वदेशीय साहित्यसर्जनना मूळमां त्रण कारणो महत्त्वनां जणाइ आवे छे. १. माता सरस्वतीनो प्रसाद, २. गुरुजनोनी कृपा, ३. पोतानी साधुचरित निराडंबर, निर्मळ अने निरहंकार भावभरी नम्रता | दर्प, पोतानी नामना के वाह वाह माटेनी एषणा, बीजाओने पोताथी हीणा-ऊणा गणवा-गणाववानी तुच्छता के क्षुद्रता - आवां बधां असत् तत्त्वोनी तेमना जीवनमां सदंतर गेरहाजरी जोवा मळे छे - आ मुद्दाने जुदी ज परंतु विशद रीते उपसावतां श्रीमद् राजचंद्रे नोंध्यु छ के - ___श्री हेमचंद्राचार्य महाप्रभावक बलवान क्षयोपशमवाळा पुरुष हता । तेओ धारत तो जुदो पंथ प्रवर्तावी शके एवा सामर्थ्यवान हता | तेमणे त्रीश हजार घरने श्रावक कर्या । त्रीश हजार घर एटले सवाथी दोढ लाख माणसनी संख्या थइ | श्री सहजानंदजीना संप्रदायमां एक लाख माणस हशे | एक लाखना समूहथी सहजानंदजीए पोतानो संप्रदाय प्रवर्ताव्यो, तो दोढ लाख अनुयायीओनो एक जुदो संप्रदाय श्री हेमचन्द्राचार्य धारत तो प्रवर्तावी शकत । Jain Education International For Private & Prsonal Use Only www.jainelibrary.org

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