Book Title: Vitragstav
Author(s): Hemchandracharya, Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ विज्ञानस्यैकमाकारं नानाकारकरम्बितम् । इच्छंस्तथागतः प्राज्ञो, नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत् ॥ ८॥ विज्ञानवादी बुद्धके अनुसार “है विज्ञान ही - साकार; अब आकार धरता सर्व द्रव्योंका वही" | इक भाव बहु-आकार रच जाए-यही स्याद्वाद है, फिर भी तथागत किस तरह उसका करे प्रतिवाद रे? || ८ ।। चित्रमेकमनेकं च, रूपं प्रामाणिकं वदन्। यौगो वैशेषिको वापि, नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत् ॥९॥ इक द्रव्यमें बहुविध-विरोधी-वर्ण होते यद्यपि, वे चित्र द्रव्य कहे उसे, पर द्रव्यभेद गिने नहि; | नैयायिकों-वैशेषिकों का पक्ष यह स्याद्वाद है फिर क्यों करें स्याद्वादका नाहक अरे ! प्रतिवाद वे ? || ९ || इच्छन् प्रधानं सत्त्वाचै - विरुद्धैर्गुम्फितं गुणैः । साङ्खयः सङ्ख्यावतां मुख्यो, नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत्।। १०॥ है एक प्रकृति परन्तु उसमें सत्त्व-रज-तम तीन है गुण तो विरोधी सांख्यमतमें, अगर यह मुमकीन है । बस है यही स्याद्वाद हे वादीन्द्र ! सांख्य-शिरोमणे ! फिर व्यर्थ खण्डन यदि करो इसका, नवह संगत बने||१०|| विमतिः सम्मतिर्वापि, चार्वाकस्य न मृग्यते । परलोकात्ममोक्षेषु, यस्य मुह्यति शेमुषी ॥११॥ “परलोक नहि, आत्मा नहीं, फिर मोक्ष भी नहि" इस तरह कुंठित तथा व्यामूढ जिनकी मति बनत है हर जगह । चार्वाक-दर्शनके-धनी-उनके विमत-मतकी फिकर, करना नहीं हम चाहते उन नास्तिकोंकी भी जिकर || ११ ।। २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100