Book Title: Vitragstav
Author(s): Hemchandracharya, Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 90
________________ यावन्नाप्नोमि पदवी, परां त्वदनुभावजाम् । तावन्मयि शरण्यत्वं, मा मुञ्च शरणं श्रिते ॥८॥ जब तक न पाऊं परम पदवी अचल-अक्षय-शिवमयी जिनराज ! जगशिरताज ! तेरी पुनित करुणासे भई। हे शरण-आगत-भक्त-वत्सल ! यशधवल ! तब तक मुझे आश्रय हमेशा निज-चरणमें बख्शना, प्रार्थं तुझे ।। ८ ।। इति शरणगमनस्तवः ॥ FROM मारमा श्री हेमचंद्राचार्य राजा कुमारपाळ ५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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