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बहुदोषो दोषहीनात, त्वत्तः कलिरशोभत । विषयुक्तो विषहरात, फणीन्द्र इव रत्नतः ॥ ८ ॥ बहु-दोषसे परिपूर्ण यदि कलिकाल है तो भी विभो ! निर्दोष अरु गुणपूर्ण-तेरे-योगसे वह सोहता ।
जैसे कि जहरीला स्वयं है नाग फणिधर पर अहो ! विषहर-निजी-मस्तकमणी-के-योगसे है सोहता ।। ८ ।।
इति कलिस्तवः ।।
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श्री हेमचंद्राचार्य
राजा कुमारपाळ
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