Book Title: Vitragstav
Author(s): Hemchandracharya, Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ ध्याता ध्येयं तथा ध्यानं, त्रयमेकात्मतां गतम् । इति ते योगमाहात्म्यं, कथं श्रद्धीयतां परैः ? ॥ ८ ।। हे नाथ ! तेरी ध्यानकी है प्रक्रिया भी अजब-सी अद्वैत जिसमें ध्यान-ध्याता-ध्येयका होता सही इस योग-महिमाके उपर परतीर्थियों तव नाथजी ! श्रद्धा करे तो भी करे कैसे ? बताओ यह अजी ! || ८ ।। इति योगशुद्धिस्तवः ।। 4 श्री हेमचंद्राचार्य राजा कुमारपाळ १. पाते - पाठां ।। ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100