Book Title: Vitragstav
Author(s): Hemchandracharya, Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 72
________________ महीयसामपि महान, महनीयो महात्मनाम् । अहो ! मे स्तुवतः स्वामी, स्तुतेर्गोचरमागमः ! ||८|| जो है महान विभूतियां उनसे भी आप महान है सुचरित-जनोंके भी लिए विभु ! आप पूजास्थान है | मैं बाल चापलमें तुम्हें प्रभुवर ! जरा स्तवने लगा - आश्चर्य अब तो यह हुआ कि स्तुति-विषय तू बन गया! || ८|| इति महिमस्तवः ।। Or / श्री हेमचंद्राचार्य राजा कुमारपाळ १. अहो महाराजजी / न्यारी हमेशा नाथजी - पाठां. ।। २. हनन / शमन - पाठां. ।। ३. कभी ले ही लिया - पाठां. ।। ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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