Book Title: Vitragstav
Author(s): Hemchandracharya, Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 41
________________ लोकोत्तर चमत्कारकरी तव भवस्थितिः । यतो नाहारनीहारी, गोचरश्चर्मचक्षुषाम् ॥ ८॥ अवदात की करुं बात क्या जिनवर ! तुम्हारे अजबके ! आहार और निहार आंखों से न कोइ निरख सके । नहि यह अलौकिक, मगर लोकोत्तर-भवस्थिति, चतुरके भी चित्तमें करती चमत्कृति, आपकी जिन-सूर हे ! ।। ८ ।। इति सहजातिशयस्तवः ।। श्री हेमचंद्राचार्य राजा कुमारपाळ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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