________________
सृष्टिवादकुहेवाक - मुन्मुच्येत्यप्रमाणकम् । त्वच्छासने रमन्ते ते, येषां नाथ ! प्रसीदसि ॥ ८॥ यों सृष्टिवादी मान्यताका असद-आग्रह त्याग कर तुझ दृष्टिवादी वचनके विभु ! वे बनेंगे पक्षधर | अज्ञानजन्य-कुवासनाओंके भयंकर-तिमिरहर ! तेरा अनुग्रह बरसता है नाथजी ! जिनके उपर ।। ८ ।।
इति जगत्कर्तृत्वनिरासस्तवः ।।
श्री हेमचंद्राचार्य
राजा कुमारपाळ
१. नहि सुखी वह सृष्टिको ? || पाठां. ।। २. दंडित - पाठां. ।।
२४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org