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परभाग रंग मृदंग गूंजई, सत्व ताल विशाल ए । समकित तंत्री तंत झणकर, सुमति सुमनस माल ए ॥ चैत ( वसन्त )
चैत्र विचित्र थ रही, अंबतणी वनरायोजी । थु शाखा अंकुरित थइ, सोह वसन्तइ पायो जी ॥ पाई वसंत सोह जिणपरि, प्रियागमनइं पदमिनी । सिणगार बिन पिण मुदित होवइ, प्रेम पुलकित अंगिनी || आगे चल कर कवि वैशाख और ज्येष्ठ महीना का भी सुन्दर वर्णन किया है । इसी प्रकार इस ग्रन्थ के पृ० ६१ में प्रकाशित नेमि राजिमती बारहमास में भी प्रकृति और बारहमास का सुन्दर वर्णन किया है पाठकों को स्वयं पढ़कर रचनाओं का रसास्वादन करना चाहिए ।
रास
स्नेह निवारणे स्थूलभद्र सझाय में कहा है कि :'नेह थी नरक निवास, नेह प्रबल छइ पास नेह देह विनाश, नेह प्रबल दुख वाल्हानइ वउलावतां रे, पीड़इ प्रेम नी झाल atest फाटइ अति घणु रे, नांखर विरह उछाल लता भुँई भारणी व रे हाँ, अंग तपs अंगार आँखड़िये आंसू झरइ रे हां जिमपावस जलधार मत किणही सु लागज्यो रे, पापी एह सनेह धूख न धुंओं नीसरइ रे हां, बलइ सुरंगी देह'
कविवर विनयचन्द्र की समस्त रचनाओं में विस्तृत रचना उत्तमकुमार चरित्र है जिसमें सदाचार को पोषण करने वाला उत्तमकुमार का उद्दात चरित्र है, जिसका सार यह दिया जा रहा है।
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