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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई जग मां विनयचन्द्र यश ते लहै रे,
जे न करै परदोह लिगार रे ; १६ बो०
॥दोहा॥ फेरी नै कुमरी कहै, प्राणपीयारा नाह ; पछतावै पड़स्यौ पछै, दिल ऊलससी दाह ; १ बात कुमर मानै नहीं, साचौ जाणै साह ; सजन मन माहे रमणि, कूड़ कपट हुवे काह ; २ सेठ अछै धर्मातमा, बहु राखै छै प्रेम ; कहि नारी बरसि अगणि, चंद्र किरण थी केम ; ३ तेहवई निजर चुकायवा, सेठ दिखलावै खेल ; वर गिरवर जल कांतिमय, वल जल रतनी रेल ; ४ हुई हीया नौ जालमी, करतो सबली हेल; पग सुठेलि समुद्र मां, नांख्यो कुमर उथेल ; ५
ढाल (५)
चाल :-बिडलै भार घणौ छै राजि कुमर पडतो इण परि भाखै, मिश्र वचन शुभ भावै ; गुण ऊपर अवगुण लेईनै, पापी खोड़ि लगावै ; १ पापी स्यु कीधो तें एह, काज कुमाणस वालौ ; पड़त समान मच्छ एक मोटो, मुख प्रसारि नै बैठौ ; ततखिण तेह कुमर नै गिलीयौ, वलि जल ऊडै पईठौ; २ पा०
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