Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 284
________________ [ २२१ ] ठाणा-स्थान ठवना=रखना, स्थापित करना ठीगो जबरदस्त ठाढी-ठंढी, शीतल ठारू-शीतल करूँ ठावा निश्चित स्थान ढकइ-जंचता है तिरस प्यासा, तृषा तीखी तीक्ष्ण तुमचउ-तुम्हारा तूटैटूट पडै ( आक्रमण) तूठा-तुष्ट हुए तेडनइ-बुलाकर ते तउ-वह तो तेडावी-बुलाकर तेवडउ-मानो, निश्चय करो तेहवउ-वैसा त्रस-चलते फिरते जीब त्रसै-फट जाती है त्राछन्तातड़ाछ से त्रेह-तह, अन्तर में प्रविष्ट होना (पृथ्वी में पानी का) डसीया ( अहि) सर्पदंश डावी-बाँयी डोकरी-बुढ़िया डोहला-दोहद डोल-डोलना डाहला-डालियाँ तक-अवसर तणी की तड़के-धूप में तंत-तत्त्व तडूकी गर्ज कर तरफलै-तडफडै, व्याकुल तलावडी-तलाइ, छोटा सरोवर । तल्पिका-शय्या तागत-बल ताग-यज्ञोपवीत ताणीनइ तानकर, खींचकर .. थकी से थया-हुआ थाटइ ठाठ से थानकइंस्थान में थापइ-स्थापित करे थापी-स्थापित की . थाय-होता है थावर-स्थिर जीव थारउ-आपका थासी होगा थिर-स्थिर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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