Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 292
________________ [ २२६ ] लीधउ लिया लूखो रूखा लूवरि लू लेखवइ-गिनती लेखइ हिसाब से लेवा लेने के लिए लोयण-लोचन, नेत्र वई अवस्था, वय वईयर-स्त्री वउलावतां भेजते, लौटते वखाण-व्याख्यान वछ-वत्स वज्जणबजने के वडम-महती वनवर्ण वमिया वमन किया वयणवचन वरसाला-बरसने वाला वलू-बलवान वलि=फिर वल्या-लौटा व्यवहारी व्यापारी वसीला निवासी वहियइवहन किया -वहिला-शीघ्र -वाइवायु करना वाचवचन वाचनाचाक्य, परम्परा, वांचन वाची-पढ़ कर वाधइ बढ़ता है वाटला-कटोरा, वाटका वाणोत्तर-वाणिज्य करने वाला, गुमास्ता वातडी-वार्ता वारू-सुन्दर वारेवौधारण करना वालंभ-बल्लभ , वाल्हाबल्लभ वालेसर वल्लभ, प्रियतम वावत-बजाते हैं वावरैच्यय करता है वासना=बांध वांसपीछे वाहला=जल प्रवाह विगताली=पिछली विगोवइनष्ट करता है विचरइ-विचरण करता है। विछूटो-वियोग (जीव विछूटो मरना) विज्जल-विजली वौंद-वर वींदणीवधू विमासण-विमर्श Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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