Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 291
________________ [ २२८ ] mmmmmmm रज्जु-रस्सी रन्न-अरण्य रमिया-रमण किया रयणरत्न रयणा-रचना रलियामणा-सुन्दर रलियालउ सुन्दर राखउ रक्षा करो राखेवा रखने के लिए .. राची रंजित होकर रा-मोटीडोर, रंदू रातो-रक्त, रचा हुवा रामति खेल रास-राशि, समूह रीझवइ-रिझाते हैं, रंजन करते हैं रीव-चिल्लाहट रीस रोष रू-रूई रूंखड़ा-वृक्ष रूठारुष्ट हुए रूडा=अच्छा रूवडी अच्छी रूहिर-रुधिर, रक्त रेलि-प्रवाह रेह-रेखा रोवराविया रुला दिया . लगइ-पर्यन्त लटकउचाल लंछन-चिह्न ललना-लाल, लालन लच्छि-लक्ष्मी लबधि-लब्धि, २८ प्रकार : तपस्या से प्राप्त आत्म-शक्ति लपटाणा लुब्ध लखाय-लक्षित होना लसाय-लिप्त लवन छेदन, काटना लगारलेश ललि-ललि-जमन कर लाग-अवसर लांघेउल्लंघन करे लाछि-लक्ष्मी लाड-प्यार लाडिली=प्रिय, प्यारी लाधी-मिली लांबौ-दीर्घ लार=साथ, पीछे ल्यावइ लाता है लाव-लेना लाहइ-लाभ लाहउ-लाभ लीणो=लीन हुई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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