Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 294
________________ सशहर = चन्द्र ससनूर = विशेष सुन्दर सहगुरू =सद्गुरु सहीयर = सखि सहिनाणी = चिन्ह, लक्षण सहेजा = प्रीतिवाले साकर = मिश्री साँक = शंका सागी - सगा साच = रक्षा करता है साधइ = सिद्ध करता है सांभलो ध्यानपूर्वक सुनो सांभरिया =स्मरण किया सामेलो = स्वागत साहमी = स्वधर्मी साम्हो = सामने सामुही= समक्ष सायकाण सायर=सागर साल-सल्य सारेवौ = सुधारना सारै=भरों से - सालै = खटके साव सर्व बिलकुल > - सासय-शास्वत 'शासता = शास्वत साह = साधन करना Jain Educationa International [ २३१ ] साही= पकड़कर सिलोक - श्लोक सिझाय= स्वाध्याय सिमातर = शय्यातर ( साधु जिसके घर ठहरे हो वह व्यक्ति सीइ = सिद्ध हो सीकसी = सिद्ध होगा सुइवो = शयन करना सुकलीणो = कुलीन सुकियारथर = सुकृतार्थं सुजगीस=अच्छी सुजान= सुज्ञानी सूतार = सूत्रधार, मिस्त्री सूँघा = सुगन्धित सुयक्खंध=श्रुतस्कंध संसत्याग सुहां = सुभटों में सुहणा = सपना सूअटो-शुक सूकइ = सूखता है संपीया= सौंपें सुविहित= सुव्यवस्थित सुहंकर =शुभंकर सुहामणी = सुहावनी सूल अच्छी तरह सेष काल = चातुर्मास के अतिरिक्त का समय For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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