Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 293
________________ [ २६० ] विषहर विषधर, सांप संकलिया=संकलित हुए विहरमान=विचरते हुए सगवट-रूपक विचरता=विचरते हुवे संघातइ-साथ में विकरवीक्रिय लब्धि से उत्पन्न संघाते साथ में कर के सर्दहै श्रद्धा करता है विरूओ-विरूप, विद्रूप संपै-संपजै, सम्प्राप्त हो विरचइ विरक्त होना सभावइ-स्वभाव से विरहण-विरहिनी समबड-समान, समकक्ष विलूधो-विलुब्ध समुद्दे शा=अध्याय का एक भाग विहडै विघटित होना समवाय समूह विह-त्रकार . समय=सिद्धान्त वेडं-छिद्र समास-प्रकरण वेगलऊ-दुर समकित=सम्यक्त्व वेढ-युद्ध समाणी=समान, समाविष्ट होना वेलू-बालूका समियउ-शान्त हुआ वेधालेवेधक समूर्छिम स्वतः उत्पन्न जन्तु वेगलादूर स्युं क्या वोली-बीती सरजित-कर्म, भाग्य सरिस्यइ-सरेगा, सिद्ध होगा सइमुखसम्मुख सरिखा-समान सइण-सज्जन सलहै सराहना सइन-स्वयं, साथ, सज्जन संलेहण=संलेखना सइहथ अपने हाथ से सलहेस-सराहना सकज-काम का सलूणा=सलोने, सुन्दर संगहणो संक्षिप्तसार सवार-सवेरा सगला-सभी संसत्तउ-शिथिलाचारी संकलि-जंजीर | संसरण-संसार, सांसारिक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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