Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 282
________________ [ २१६ ] गहकइ-प्रफुल्लित होता है गहगाटइ-उत्साह से, समारोह से गहेली-पागल, गृथिल गाने प्रमाण में गाह-गाथा गीतारथ गीतार्थ, बहुश्रुत विद्वान गुड़े-लुढकता है गुणीयण-गुणी जन गुल-गुड़ गूंगा-मूक, अबोल गोचरी=मधुकरी, भिक्षार्थ भ्रमण गोठ-गोष्ठी चरवी-चरी, बटलोइ | चंदूआ-चंदरवो चंग अच्छा चहुटी-चिपकी, लगी चांपइन्दबाना चारित-संयम, दीक्षा चावो-प्रिय, चाहवाला चीत-चित, चिन्ता, याद चीर वस्त्र, ओढणा चुलसी-चौरासी चूंप=इच्छा, चेष्टा, युक्ति चूरउ-चूर्ण करो चीगटइ-चिकने, स्निग्ध चोला-मजीठ, लाल चौरी-विवाह मण्डप चौसाल होसियार, चतुर घटइ-चाहिए घाठी-घृष्ट, घसी घाणी-कोल्हू घालतां प्रविष्ट करते, लगाते घाल्यो-डाला घालिस-डालूंगी घुरइ-बजते हैं घेटा-मींढा छती रहीहुइ छव्यौ-स्पर्श किया छाजइ-सुशोभित छांडस्युं छोडूंगा छानेगुप्त छावरै छोड़े छाहडी छाया छीपे-स्पर्श करै छेहड़इ अन्त में छोकरवाद-लड़कपन चइन-चैन, आनन्द चउमाल-चमालीस चटकउ-उत्साह चवि-च्यवकर चरण-चारित्त, चर्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296