Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 281
________________ [ २१८ ] wwwwwwwww काढूँ=निकालूं खमिजे क्षमा करना काण-लिहाज, कायदा, इज्जत खरउन्सत्य कारिमउ-व्यर्थ खाटइभोगता है कारिज कार्य खाणी-खान कासल-कश्मल, पाप खातर खाता बही किंपाक-एक विष परिणामी मधुर | खांतइ-क्षांतिपूर्वक फल | खामीत्रुटि किम कैसे खिजमति-सेवा किराड़े-किनारे खिण-क्षण किसी-कौन सी खिसइ हटता है कीकी आँख की पुतली खीणउ-क्षीण कुढना भीतर ही भीतर जलना खुंद अपराध कुण-कौन खूटि (गयो)=समाप्त ( हो गया) कूकइ-चिल्लाते, पुकारते है खेड़-हांक कर, चला कर कूड़-झूठ, मिथ्या खेह-धूलि कूरम अक्रूर खोड़-त्रुटि केडइ-पीछे खोली-प्रक्षालित कर केरीकी केलवि-प्रयत्न करके, खोज करके | गइन गगन केहना-किसके गड़ां ओले केही कैसी गणपिटक-द्वादशांगी कोड-उत्कण्ठा गंभारे गर्मगृह कोतिल-सजावटी (घोड़े) गमइ-सुहाना कोर-कोने में गमा भेद गरूआ-बड़े खमणाक्षपणक, दिगम्बर गलगलिगद्गद् खमात-सहन होना गवाणी-गायी गई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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