Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 279
________________ आ CU [ २१६ ] wimmmmmmmmmmmmm अविहड़-अविघट, निश्चय आम-ऐसा अवहटै दूर करता है आराहुंआराधन करता हूँ असाता-असमाधि, अशान्ति आराबा एक प्रकार का शस्त्र अहिनाण=अधिज्ञान, चिह्न, पहिचान आलंबिया अवलम्बित आली-सखी आउल-बांवल, कांटेदार वृक्ष आलइ व्यर्थ आखड़ी-नियम आलि छेड़छाड़ आगेवाण-आगीवान, प्रधान आलोचि-विचार कर आगलै-आगे आसरौ-आश्रय आगल अर्गला आगन्या-आज्ञा इकताईएकत्त्व आचर्या-आचरण क्रिया इवड़ी ऐसी आछदृई छटते हैं आँजु-अंजन डालता हूँ उघाड़ी खोली आडी-पहेली, काम में आना, उछाहि-उत्साह से रुकावट डालना उच्छवक-उत्सुक आडौ-जिद्द, हठ उच्छक-उत्सुक आणी-लाकर उजमाल=उज्वल, तेजस्वी आदस्या-स्वीकार किया उमड़वाट-उजड़ मार्ग आधाकर्मिक-अधोकर्मिक, जो साधु | उंठ साढे तीन के निमित्त बना हो। उदाल-नष्ट करना आन-अन्य उदग्र-जोरदार आपइ-स्वयं, देता है उदव-उलटना आपउदो उद्देशा=अध्याय आफाणी अपने आप उपस्यउ-उपशांत हुआ आंबिलतप-रूखा व अलोना एक उपधान-श्रुताराधनार्थ किया जाने धान्य दिन में एक ही बार खाना वाला तप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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