Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 280
________________ उपाड़िने= उठाकर - ऊपजस्यै = उत्पन्न होगा उंबरा = उमराव उमाही = उमंग, उल्लसित उयर=उदर, गर्भ उलट इ = उल्लसित होना उवंग- उपांग उवावण= उपार्जन उवेख्यउ = उपेक्षित उसन्नउ = शिथिलाचरी ऊठाड़ी उठाकर ऊडेवा= उडने के लिए ऊतावलि - शीघ्रता ऊधरउ = उद्धार करो ऊभी खड़ी हुई ए एकरस्य उ = एक बार एकलड़ा=अकेले एहवउ = ऐसा ओछउ=न्यून ओलग= सेवा ओ ओलइ=ओट, मिस ओसयो = हटना औखाणौ - कहावत अंभ=पानी Jain Educationa International अं [ २१७ ] अंतेउर=अन्तःपुर अंतगड़= अन्तःकृत, अंतिम समय में कार्य सिद्ध कर मोक्ष जानेवाले अदेसउ=आशंका अंदोह = अंदोलन, कंपन क कचोला=प्याला कड़कै = शब्द करना, कड़कड़ाहट कन्है=पास, निकट कड़व= कटुक कड़ा कृता कण=धान्य, कबाण = कमान कमणा= कमी, न्यूनता करड़यो = काटखाया करण= क्रिया करसणी कृषक, किसान अंश कल= अटकल, उपाय कवड़ी = कौड़ी कवियण= कविजन कहर= आफत कन्ता=कान्त, पति कांकर=कंकड़ काँकल=ललकार कागल-पत्र काठौ= दृढ़ काढतौ-निकालते हुए For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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