Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 285
________________ थुड़ वृक्ष का तना; धड़ थुणिया = स्तुति की स्तुति करता हूँ थेट = ठेठ थोभ = स्तम्भ द दड़ीगो= जबरदस्त दमिया = दमन किया दवरक = डोरी दशऊठण = दसोठन, पुत्र जन्म के १० वें दिन का उत्सव द हिस्युं = नष्ट करूंगा, जलाऊँगा दाखवी = दिखाकर दाखविस्यौ = दिखाओगे दाभै=दग्ध हो रहा है दाढगले मुंह में पानी आवे दाव=अवसर दिवाजइ = प्रकाशित दिक्षायें - देखने की इच्छा से दिहाड़ला = दिवस दिसा = दिशि, तरफ दीकरी = पुत्री दीठ = देखा, दृष्टि दीस इ = दिखाई देता है दीदीखते हो [ २२२ ] दुक्कर = दुष्कर दुत्तर = दुस्तर Jain Educationa International दुहेला=दुखदाई दृठ= दुष्ट औ-हटने का आदेश, निकालना, ललकारना दुहवियौ = दुखित किया देवा = देने के लिए देस = देशना, उपदेश देशना= उपदेश देहड़ी = शरीर देहरा = देवगृह, मन्दिर दोगंधक = इन्द्र के गुरु स्थानीय देव दोर डोरी, रस्सी दोरड़ो डोरी दोहिला=दुर्लभ ध घणीयाणी = स्वामिनी, स्त्री धमियउ = तत धरमीण = धर्मात्मा धवलड़ौ - सफेद सवा लागी = प्रविष्ट होने लगी धीणौ धेनु आदि दुधारू पशु धीरप = धैर्य धींगौ= जबरदस्त धुख इ = सुलगता है धुरीण = धुरन्धर, प्रधान धोरी = प्रधान, संचालक, अगुआ धंध= जंजाल For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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