Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

Previous | Next

Page 286
________________ । २२३ ] निरूवणा-निरूपण नटी (जावै ) इनकार करें निरान्ति=निश्चिन्त नडैन्नमै निलवट-ललाट नथी नहीं निलौ=निलय, घर नमिया नमन किया निहाली-निहारकर, देखकर नय-जानने का प्रकार, तत्व जानने निहेजा-निस्नेही का साधन निक्षेप-वस्तु सिद्ध करने के प्रकार नवि-नहीं नीगमियइ-निर्गमन करना नानड़ी-बच्ची नीठ-कठिनता से नांखइ=गिराता है नीम नियम नांखंतांडालते हुए नीसरइ=निकले नाठउन्नष्ट हुआ नीसरणी-सीड़ी, निसैनी नाठौ-भग गया नीसाण-उंठ पर बजनेवाली नोबत, नाणइ नहीं लाता है नगाड़े नाणु-द्रव्य नेट अन्तमें नालइनहीं देता है नेम=नियम, त्याग नासंतां-भगते हुए नेहलउ-स्नेह, प्रेम निकाचित=वे कर्म जो भोगे बिना | नैडो निकट न छूटे प निचंत=निश्चित पखालतां प्रक्षालित करते निचोल-निचोड़ पखी-पक्ष, तरफ की निजुत्ति नियुक्ति पगलाचरण पादुका निटुल=निष्ठुर पचखाण-प्रत्याख्यान, त्याग निटोल=निश्चित, व्यर्थ पंजर-पिंजड़ा निबद्ध दृढ़ बंध (कर्म) जो भोगे पटली तख्ती बिना न छूटे पटोलें-पटकूल निरख-दृष्टि पड़वजप्रतिबंध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296