Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
________________
श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई
१७५ तिण अवसरि मन धरि उछरंग, श्री उत्तमाभिध सगुणनरिंद,मी० मध्यानै जिन पूजा हेत, कुसुमचंदन लेइ सुगति संकेत ; भी० १० निज मंदिर पासै प्रासाद, आयौ मन धरतौ आल्हाद ; मी० जातो किण ही न दीठो तेह, फिर पाछौ नायौ वलि गेह; मी०११ त्रिलोचना कुमरी तिणवार, दुख संपूरित हृदय मझार; मी० दुखणी दुख भरि करै विलाप, प्रीय विरहागनि तनसंताप:१२मी० निज पति तणी करेवा सार, दासी नै मेली तिण वार; मी० पिण नवि पायो परम दयाल, नयणे नीर झरै तिण वार; मी०१३ लज्जा छोडी वारंवार, ऊंचइ स्वर ते करईपुकार ; मी० मन में धारै अधिको सोग, हीयड़ो फाटइ नाह वियोग ; मी०१४ हिव तिणहीज पुरमांह प्रधान, सकल सुजस गुण तणौ निधान मी० महेसदत्त नामै धनवंत, सहु वणिक मांहे सौभंत ; मी० १५ छप्पन कोड़ि निधान मझार, छप्पन कोड़ि कलांतर धार ; मी० छपन कोड़ि नौ करैव्यापार, इतली सोवन कोड़ि विचार ; मी०१६ एहवी जेहना घरमां रिद्धि, पुण्य-संयोगे दिन दिन वृद्धि ; मी० सूरिजनी परि झाकझमाल, विनयचंद्र कहै बीजी ढाल ; मी०१७
॥ दहा ॥ वाहण जेहनै पांचसै, वलीय पांच सई हाट ; घर गोकुल पिण पांच से, तितला सकट सुघाट ; १ गज तुरंग नर पालखी, पांच सयां प्रत्येक ; कोठा जेहनै पांच सै, वली वणिज सुविवेक ; २
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296