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तोरण बंधाव्या
धवल गीत गावै नारि सुहामणा जी,
विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि
मंदिर बारणे जी. चित्रत कीधो घर मोहणवेलि हो; मां०१०
वर भणी ताजा
कलश वंस मेल्ही कार्जे वेदिका जी,
श्रवणे सांभलतां सहु ने सुहाय हो ; मां०
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मेलि मेल्ह्या सकल उपाय हो ; मां० १९ बला मेला नवा जी,
अम्बर उज्जवल सुन्दर पटकूल हो ; मां०
सोवन आभरण करावै नव नवा जी,
रतन जड़ित भारी मूल हो ; मां० १२ जातीला गजराज तुरी जिण संग्रहा जी,
यानादिक हाथ मेलावे देय हो ; मां० सरल मति धारी तोजी ढाल मां जी,
इण परि विनयचंद्र कहेय हो ; मां १३
॥ दूहा ॥
वार्त्ता कौतुक कारणी, पुरमां थई तिण वार ; वर विण सेठ वीवाह नो, रच्यो सबल विस्तार ; १ एह वचन राजा सुणी, चितै इम निज चित्त ; घन माहेशदत्त गृहपति, जेहनी अविरल मत्ति ; २ देस्यै धन जामात नै, कन्या परणावेह ; व्रत लेस्यै वयरागियौ, मन धरि परम सनेह ; ३
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