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________________ १७८ तोरण बंधाव्या धवल गीत गावै नारि सुहामणा जी, विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि मंदिर बारणे जी. चित्रत कीधो घर मोहणवेलि हो; मां०१० वर भणी ताजा कलश वंस मेल्ही कार्जे वेदिका जी, श्रवणे सांभलतां सहु ने सुहाय हो ; मां० Jain Educationa International मेलि मेल्ह्या सकल उपाय हो ; मां० १९ बला मेला नवा जी, अम्बर उज्जवल सुन्दर पटकूल हो ; मां० सोवन आभरण करावै नव नवा जी, रतन जड़ित भारी मूल हो ; मां० १२ जातीला गजराज तुरी जिण संग्रहा जी, यानादिक हाथ मेलावे देय हो ; मां० सरल मति धारी तोजी ढाल मां जी, इण परि विनयचंद्र कहेय हो ; मां १३ ॥ दूहा ॥ वार्त्ता कौतुक कारणी, पुरमां थई तिण वार ; वर विण सेठ वीवाह नो, रच्यो सबल विस्तार ; १ एह वचन राजा सुणी, चितै इम निज चित्त ; घन माहेशदत्त गृहपति, जेहनी अविरल मत्ति ; २ देस्यै धन जामात नै, कन्या परणावेह ; व्रत लेस्यै वयरागियौ, मन धरि परम सनेह ; ३ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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