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________________ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई १७६ सुद्ध जमाई नी लहुं, तो तेहनै देई राज ; हुँ पिण संजम आदरं, सारू उत्तम काज ; ४ महेशदत्त सुं राजवी, एहवौ करीय विचार ; पड़ह नगर मां फेरव्यो, उद्घोषणा अपार; ५ ढाल (४) मुंगफली सी वारी आंगुली, एहनी राजा पुत्री त्रिलोचना, विरहाकुल थई नाह वियोग ; एहवौ राय वचन कहावै छै सही, तेहनो पति क्यांही गयौ तिण कुमरी राखै बहु सोग ; १ मदालसा परदेसणी, मैं पुत्री करि मानी तेह । ए०. सहु सम्बन्ध तेहनो कहै, मांडी नै धुर थी नर जेह ।२ । ए. राज्य समापुं ते भणी, वलि आपई महेशदत्त सेठ । ए० सहस्रकला निज दीकरी, सुरकन्या पिण जेहनै हेठ । ३ ए० एक मास नै अंतरै, सुक पडहो छबीयौ तिणवार । ए० लोक सहु सुणज्यो तुमे, मुझ वाणी प्राणी हितकार । ४ ए० मुझ ने ले जावो हिवै, महाराज केरी सभा मझार । एक क्षितिपति ना जामात नी, हुं कहिस्यु सगलो ही विरतंत । ५९० मदालसा नो पणि तिहां, संभलावीस नृप में विरतन्त । ए० राज्य लहीस राजा तणौ, कन्या परणेसु गुणवन्त । ६ ए० कौतुक धरि ते आदमी, लेइ आव्या नृप परषद मांहि । एक राय बोलाव्यौ सूअटौ, नर भाषा बोल्यो ते साहि । ७ ए० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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