SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई को एक निमित्त नै पूछ्यौ तेडिनै जी, विनय करी. देइ बहुमान हो; मां० माहरी पुत्री ने कुण वर परणस्यै जी, तेह कहै सांभलि वचन प्रधान हो; मां०५ राजा नई दरबार मांहे जे बसि नै जी, त्रिलोचना भर्ता री कहिल्यै सुद्धि हो;मां० कहस्यै वृतान्त मदालसा कुमरी नौ जी, मूल थी मांडी नै निर्मल बुद्धि हो ; मां०६ ताहरी पुत्री नो ते वर जाणजै जी, महीना नै अंतरि मिलस्यै तेह हो ; मां० समस्त राजा नो थास्यै राजवी जी, तेहनौ प्रताप अखंड अछेह हो ; मो०७ सगली सामग्री हिव वीवाहनी जी, हलुवै हलुवै करै सेठ सुजाण हो; मां० इहाँ मन संदेह न आणिजे जी साची मानै माहरी तुं वाणि हो ; मां०८ लगन दीधो निरदोष निहालिनै जी, ___ वचन अंगीकरि महेशदत्त हो; मां० हरषित मन में थई अति घणु जी, पुत्री नै परणायवा उछक चित्त हो; मां०६ मंडप कराया मोटा सोहता जी, सज्जन तेड़ावै कागल मेल्हि हो ; मां० १२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy