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________________ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि वाणोत्तर वाजिन पणि, सुभट थाट सश्रीक ; पंच पंचसय जाणियै ए सगला तहकीक ; ३ पांच लाख सेवक तुरी, एहवी लखमी जास; यौवन वय वोली सहु, पिण संतति नहिं तास ; ४ ढाल (३) केत लख लागा राजाजी रै मालियै जी इणपरि चिंता करता तेहनै दिन केतलाइक बीता ताम हो; मांहरी सुणिज्यो चित देइ चंगी वातड़ी जी, वातडीमा चोज अधिक इण ठाम हो;मांक वाटड़ी जोवंता थई कन्यका जी, लावण्यगुण रूप तणौजाणै धाम हो;मां०१ सहस्रकला तसु नाम सुहामणो जी, चौसट्ठि कलानी ते छै जाण हो; मां० अनुक्रमि भर यौवन थई सुन्दरी जी, युवती नो जे छंडावै माण हो ; मां० २ चिंतातुर थयौ तात निहालि नै जी, केहनै ए दीजै कन्या सार हो ; मां० ए सरिखौ रूपै गुण विद्या आगलौ जी, पुण्यै लहीये एहवो वर सार हो ; मां० ३ घर घर मां वर जोवै सेठ सुता भणी जो, फिर फिर ने पुर पुर जोवै सुविशेष हो मां० पणि कन्या सरिखो वर न मिल्यौ जोर्वतां जी, आरति मन मांहे थई अलेख हो मां०४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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