Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 261
________________ १६८ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि पासै सर आवंता पालै, भलकंते निज भालै ; नयणे निपट निजीक निहालै धाव झड़ाझड़ धाले ; १७ मा० इतर वेढं हुई उपशमती, कलिरो भाव कहती ; दुइ दल रा तिहां दीसै दंती, बादल घटा बहंती हो ; १८ मा० प्रलय काल रिण मेघ प्रगट्टे, इत तल थल उदव ; झलहल विज्जल खड़ग झपट्टे, छट्टा वाण आछट्टई हो ; १६ मा० उदक व रुधिरालउ लोला, गडां रूप ते गोला ; इन्द्र धनुष झण्डा धज ओला, हयवर पवन हिलोला हो ; २० मा० इणपरि युद्ध तणी विधि जाणै, जे सगवट नें जाणे ; परतखि दशमी ढाल प्रमाणै, विनयचन्द्र सुवखाणै हो ; २१ मा० ॥ दूहा ॥ संग्रामांगण नै विषै, जीतो उत्तम राय ; वीरसेन नै जीवतौ, बांधि लियौ तिणठाय ; १ फेरावी निज आगन्या, उत्तम राजा वेगि ; गाल्यो गह बैरी तणो, भला जगाई तेग ; २ वीरसेन मनमां चींतवें, माहरी न रही माम; हुँ पिण जोरावर हतो, एह थयौ किम आम ; ३ निज अपराध खमाइ नै पाए लागौ जाम ; राजा छोड़ि दीयो तुरत, फिर बगस्यौ निज ठाम ; ४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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