________________
श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई
१६६
ढाल (११)
ओलगड़ी चित्त मां (२) विचारै राजा एहवो रे,
हो अपजस भाखै लोक ; तो हिवै (२) आफु उत्तम राय नै रे,
राज्य प्रमुख सहु थोक ; १ चि० केहनी (२) गुमान रहै नहीं साबतो रे,
गंजी नई कुण जाय ; परभवि (२) परमेसर पूज्यां विना रे,
जेत कहो किम थाय ; २ चि० राजनै (२) गजादिक तूंपीया रे,
__ उत्तम नृप नै ताम; निज मन (२) चाल्यो गृह बंधन थकी रे,
___ वीरसेन हित काम ; ३ चि० इण समै (२) सुविहित मुनि चूडामणी रे,
__ हो आव्या युगन्धर सूरि ; नगर नै (२) समीप वन में समोसर्या रे,
हो साधु सहित भरपूर ; ४ चि० आवी नै (२) वन पालक दीध वधामणी रे,
गुरु आगमन प्रघोष ; वांदिवा (२) चाल्यो निज परवार सुँ रे,
हो नृप तेहनै संतोष ; ५ चि०
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org