Book Title: Vinaychandra kruti Kusumanjali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

Previous | Next

Page 271
________________ २०८ विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि ढाल बयालीस अति भली रे, नव नव राग प्रधान ; सु० अठतालीस नै आठसै रे, गाथा नौ छै मान ; १६ सु० एह चरित सुणतां सदा रे, वाधै महियल माम ; सु० सुख संपति बहु पामियै रे, अनुक्रमि मन विश्राम ; १७ सु० ढाल चवदमी मन गमी रे, सहु रीझ्या ठाम ठाम ; सु० ज्ञानतिलक गुरु सानिधै रे, विनयचंद कहै आम ; १८ सु० इति श्रीविनयचन्द्र कवि विरचिते सरस ढाल खचिते सच्चातुर्य शौर्य धैर्य गांभीर्यादि गुण गणामत्रे। श्री मन्महाराज उत्तमकुमार चरित्रे जिन पूजा रचन । श्रेष्टि दापित मालाकारणी पुष्प नलिकास्थ लघु सर्प दशन गणिका निर्मित विषापहरण । क्रीडा शुक करण। पटहोद्घोषण स्पर्शन सहस्रलोचना परिणयन नरवर्म दत्त राज्य प्रापण। भ्रमरकेतु मिलन । महासेन दत्त राज्यांगीकरण । हठात् वीरसेन राज्य ग्रहण पिता दत्त राज्यादि राज्य चतुष्टय निर्वाहण समयामृतसूरि समागमन । पूर्व भव श्रवणात् अवाप्त चारित्र सूत्रण । निर्वाणपद प्राप्ति समर्थनो नाम चातुर्य्य वयं तुसंग्रजोधिकारः॥३॥ संवत् १८१० वर्षे मिती चैत सुदि ११ शुक्र। महोपाध्याय श्री ५ पुण्यचन्द्रजी गणि तत्शिष्य पुण्यविलासजी गणि। तदंतेवासी वाचक पुण्यशील गणिः लिखिता चतुष्पदिका। बाकरोद ग्राम मध्ये ।। श्रीः॥ [श्री हीराचन्दसूरिजी के बनारस, ज्ञानभंडार की प्रति पत्र २१ पंक्ति प्रतिपत्र १७, अक्षर प्रति पंक्तिमें ५६, आदि व अन्त का १-१ पृष्ठ रिक्त] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296