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विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि अनुभव नै अधिकार थी रे, कांइ सत्ता ने अनुकूल रे ; विनयचंद्र कहै मैं कीयो रे, कांइ एह संबंध समूल रे ; १४ चा० इतिश्री विनयचंद्र विरचिते सरस ढाल खचिते सच्चातुर्य शौर्य गांभीर्यादि गुणगणामत्रे। श्री मन्महाराजकुमार उत्तम चरित्रे सुर-परीक्षित सत्व-प्रकटित प्रदत्त । रत्न प्रभाव प्रोद्भूत भूरिजल प्रकटन तत्पानतः सकल लोक तृप्ति वितरण । दुर्दैवात्समुद्रान्तबूंडन मत्स्य समुद्रान्तः पतन तग्दिलण मोटपल्ली वेलाकूल प्रापण। धीवर ग्रहण मच्छ विदारणतस्ततो निस्सरण। तत्र स्व विद्या यशः ख्याति विस्तरण दुष्टाहिदष्ट कष्ट त्रसित राजपुत्री सज्जीकरणो जीवत धरणो रमणतयाङ्गीकरण तत्पाणिग्रहणादि विविध चरित्र सूत्रणो नाम तृतीया
ग्रजोऽधिकारः ।।२॥
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