________________
[ ४३ ] स्वागत में नगर को सजाकर बड़े भारी उत्सव समारोह किये गए। उत्तमकुमार अपने माता पिता की चरणवन्दना कर अत्यन्त प्रमुदित हुआ। अपने पुत्र को इतने बड़े राज्य-विस्तार व चार रानियों सहित समागत देखकर माता-पिता को अपार हर्ष हुआ। राजा मकरध्वज ने कुमार को शुभमुहूर्त में राज्याभिषिक्त कर स्वयं दीक्षा ले ली।
अब उत्तमकुमार चार राज्यों का अधीश्वर था। उसके ४० लाख हाथी, ४० लाख घोड़े ४० लाख रथ व चार करोड़ पैदल सेना थी। वह ४० कोटि गामों का अधिपति था। उसने तीर्थयात्रा, जिनबिंब व प्रसादों के निर्माण तथा ग्रंथ भण्डार व स्वधर्मी वात्सल्य में अगणित धनराशि व्यय की। इस प्रकार चार रानियों के साथ सुखपूर्वक राज्य करने लगा। एक दिन केवली मुनिराज के शुभागमन होने पर राजा चरणवन्दनार्थ उपस्थित हुआ। उपदेश सुनकर राजा उत्तमकुमार ने केवली भगवान से पूछा-प्रभो ! मैंने ऐसे क्या पाप-पुण्य किये जिससे इतनी ऋद्धि सम्पत्ति पाने के साथ-साथ समुद्र में गिरा, मच्छ के पेट से निकलकर धीवर के यहाँ रहा एवं गणिका के यहाँ शुक पक्षी के रूप में रहना पड़ा । केवली भगवान ने फरमायापूर्वकृत कर्म का विपाक उदय में आने पर सुख-दुःख भोगना पड़ता है। कर्मों का प्रभाव जानने के लिए केवली भगवान ने राजा को पूर्व जन्म का सम्बन्ध कहा-हिमालय प्रदेश के सुदत्त ग्राम में धनदत्त नामक एक कौटुम्बिक रहता था जिसके चार
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org