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श्री जिन प्रतिमा स्वरूप निरूपण स्वाध्याय
धर्म विशेष विरुद्धता रे, तें प्रारंभी मूध । ते हिव शोभा किम रहइ रे, जिम कांजीयइ दूध || ६ || अ० ॥ साधन फल तें आदस्यउ रे, करण बिना परतक्ष । पिण कितलाइक दिन रहे रे, नदी कनारै वृक्ष ||७||०|| ढाल (४)
चाल - मोहन सुन्दरी ले गयउ, एहनी
चिदानंद फल जउ ग्रहइं, जिन पूजा मन धार । आधाकर्मिक भांति नउ हो, दूषण नहीय लिगार ||१|| मूरख रे मानि कथन तं माहरउ || आंकणी || ताहरउ मन भ्रामिक थयउ, अर्चित हिंसा हेत । नाग भूत यक्षादि नउ हो, विवरण सगलउ चेत ||२||मू०|| पिण जिन हेति नवि काउ, सूयगडांग मर देखि । भाष्य चूर्णि निर्युक्तियइ हो, एहिज अर्थ विशेष ||३||मू || मानव सूत्र सहु वली, पिण प्रतिमा सुं द्वेष | उताहर मुख दीजियइ हो, मषीय कूर्चिका रेख || ४ ||मू०|| जिनवर जैन समाचर, शैव ब्रह्म हरि राम । तूं तउ एकण मां नहीं हो, निर्गत भेष प्रकाम ॥५०॥
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कलश
इम सुगम कहाँ जउ न समझ, सूत्र नउ बोधक पणउ । भव में अनंतानंत कालर, दुख देखिस तूं घणउ ॥ आणा विना जे मत उपाज, नरक तासु निदान ए । कवि विनयचन्द्र जिनेश प्रतिमा, तणउ धरिये ध्यान ए || १ || इतिश्री जिन प्रतिमा स्वरूप निरूपणं स्वाध्याय: सर्व गाथा ३६ [ पत्र १ आचार्य ख० गच्छ भण्डार ]
१ प्रकाम - अतिशयेन
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