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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई
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ढाल (१४)
सीयाला हे भलइ आवीयौ, एहनी नवलो नेह लगाड़िवा, कुमरी नै हो ते कुमर सुजाण ; सहेली हे नयणे मिलै, वलि वयणे हो ते चवै मीठी वाणि ; स० चोल मजीठ तणी परै, रंग लागोहे मांहो मांहे प्रमाण १ स० जोड़ी सरखी जाणि नै, ते परणे हे यौवन नै लाह ; स० विचि मांहे थई डोकरी, तिहां कीधो हे गंधर्व वीवाह; २ स० हाथ मुकावण द्य तिहां, मणि माणिक हे भलीरतन नीकोड़िा स० द्य आसीस सुहामणी, मत लागो हो इण जोडि नै खोड़ि; ३ स० अंग विलेपन कीजिये, कस्तूरी हे नूतन घनसार ; स० कुमर कुसुम सायक समौ, रंभा नै हे कुमरी अवतार ; ४ स० खावो विलसौ भोगवौ, जो जग माहे किम जाणौ साच ; स० स्वाद अछै इण वात मां, इम जंपइ हो ते वृद्धा वाच ; ५ स० खिण खिण मां पहरईतिके, जिहाँ भूषण हे नव नवला वेस; स० मन गमती मोजां करै, भय नाणे हे केहनो लवलेश ; ६ स० धरम तणी चरचा करै, मन रू. हे वर वींदणी तेह ; स० जिम जिम चतुरपणो भजे, तसु तिमतिम हे हुवै विकसित देह; स० फूले फलै रलीयामणा, देखाड़े हे कुमरी आराम ; स० जल ना कुंड सुहामणा, लेइ नै हे तिहां नाम सुठाम; ८ स० पालोकड़ निज हरणली, खेलायै हे मन धरि ऊछरंग ; स. घड़ी घड़ी नै अन्तरै, बिहुं नो हे थयो चढतो रंग ; E
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