________________
श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई १४७ रजनी तुजाजे निज थानक, दिवसे करिस्यां ख्याल; वि० ताहरै मिलियै माहरा मन नो, टलीयौ सबलौ साल ; वि०१० माहरै तुंछ परम सनेही, प्राण तणौ आधार ; वि० इत्यादिक वचने संतोष, करि चुंबन करि सार ; वि० ११ कुमरी तेड़ि कहै निज पति नै, नीच थकी स्यौ नेह ; वि० प्रीतम ए तौ वडौ ज अधर्मा, निपट कपट नौ गेह; वि० १२ मोर मधुर स्वर करि नै बोलै, रंग सुरंगौ होइ, वि० पुंछ सहित विषहर नै खायै, इण दृष्टान्ते जोइ ; वि० १३ दाढ गलै सहुनी गुल दीठां, तेहवौ नारि शरीर ; वि० दृश्यमान उपमान नै नइण; जेहवौ वारिधि नीर ; वि० १४ केवल मुझ हरिवा नै काजै, मांडै तुम सु रंग ; वि० प्रीत तणा बीजा मुख दीसै, ए कायरो रे कुरंग ; वि० १५ ए बीजै अधिकार तीजी, ढाल कही सुविलास ; वि० विनयचन्द्र जो मुझ नै चाहै, मानि मोरी अरदास वि० १६
॥ दूहा ॥ माणस कालै सिर तणौ, मिसरी घोले मुख ; हीयड़ा नौ कपटी हुवै, अवसर आपै दुख ; १ तिण ऊपरि सांभलि कथा, वाल्हेसर सुविदीत ; राजकुमर इक वन विषै, गयो सहू ले मीत ; २ बीजा पिण पाछलि कीया, तिज घोड़ो छोड़ाणि; पहुतौ वन मांहे तुरत, अंग पराक्रम आणि ; ३
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org