________________
१४०
विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि स० प्रीतम नो चित रीझीयो, मधुर स्वर हे गाई गुणगीत ; स० पति भगती ए कुयरी, पदमण नी हे जाणै सहुरीति ; १० स० कुमर सतेजो हिवथयो, कौमुदी करि जाणे जिमचंद; स० लोक सहु पिण इम कहै, नारी विण हे जाणौ नर मन्द; ११ स० ढाल कही ए चौदमी, तिण माहे हो पहिलो अधिकार; स० मनगमतां पूरौ थयौ, ते तौ थाज्यो हे सुणतां सुखकार ; १२ स० निजमति विस्तरवा भणी, मैं कीधो हे ए प्रथम अभ्यास; स० विनयचन्द्र कहै दाखिस्यु, आगै पणि हे द्वितीय प्रकाश; १३ इति श्री विनयचन्द्र विरचिते सरस ढाल खचिते सञ्चातुर्य शौर्य धैर्य गांभीर्यादि गुण गणा मत्रे श्री मन्महाराज उत्तमकुमार चरित्रे पर जनपद संचरण अश्व परीक्षा करण चित्राकूटावनिध मिलन भृगुकच्छपुर गमन यान यात्रा रोहण पलाद निर्दलन भूमिगृह प्रवेशन मदालसा पाणिपीड़नो नाम द्वितीयाग्रजो
ऽधिकारः ॥ १॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org