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विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जाल
॥ दूहा ॥ रज्जु विलंबी नै कुमर, पइस कूप मझार ; तिण माहे इक इण परै, निरखै देव प्रकार ; १ जाली कंचन मांहि सुभ, जल ऊपरि तिहां कीध; मन मां अचरिज ऊपनौ, आडी किण ए दीध ; २ सुणो सुणो रे लोक सहु, विस्मय वाली वात ; जाली सोवन नी अछै, दीठां उल्लसै गात ; ३ तिण नीचे जल देखि नै, बड़वखती वड़वोर ; उरी परही करि जालिका, भाजै धर मन धीर ; ४ पाणी सुगम कीयौ कुमर, जेह हतो दुरलंभ ; रलियाइत सहु को थया, पोछो परिघल अंभ ; ५
दहो सोरठो गुण समरी नर तेह, कुमर तणा तिण अवसरै ; तास चरण नी खेह, सहु को आपण नै गिणे ; ६
ढाल-१० राग-सामेरी चतुर नर एह बड़ी अधिकाई, बाल अवस्था मांहि अछै पणि, कुमर थयौ सुखदाई ; १ च० हिव चालौ प्रवहण पूरी नै, करि जल तणी सझाई ; चन्द्रद्वीप मांहे बैठां किम, आवै वडम वडाई ; २ च. वात करंतां कूपक मांहे, अद्भुत भीत वणाई; देव दुवार सहित पाउडोए, निरखै कुमर सवाई ; ३ च०
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