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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई मुझ सरिखौ माथै छतां रे, कांइ डरावै आम ; सुरपति तिण मुझ सामुही रे, घाल सकै नहीं हाम ; ६ स० तौ ए स्यु छै बापड़ी रे, एहनी सी परवाह ; स्याल तणौ स्यौ आसरौ रे, सीह तिहाँ गज गाह ; ७ स० ऊतरि प्रवहण थी तदा रे, जल भरिवा नै काज ; कूप समीपई आविया रे, लोकां तणां समाज ; ८ स० मन संकित पण तो हिवै रे, लेइ नै जल पात्र ; राद आगलि बांधि नै रे, मंक्यो सरलै गात्र ; 8 स० पाणी तिहाँ नवि नीकलै रे, सोकातुर सहु जात ; चिंतवणा एहवी करै रे, एतौ विरुइ वात ; १० स० रीव करई वलि तरफलै रे, जिम थोड़े जल मीन ; ऐ ऐ दुर्जय ए त्रिषा रे, जेण थया सत्वहीन ; ११ स० माँहो माँहे ते कहै रे, दीसै जलि भृत कूप ; तोही बिन्दु न नीकलै रे, कोइक देव सरूप ; १२ स० अरति अंदोह करै घणु रे, मरणौ आयो माय ; स्यु कीजै हिव बापजी रे, तिरष न खमणी जाय ; १३ स० के संभारै गेहनै रे, के महिला सुख सेज : के बाई के बहिनड़ी रे, के भाई के भाणेज ; १४ स० इम चिंतातुर लोक नै रे, देखी राजकुमार ; कूप प्रवेशन आदरी रे, सहु मन कीध करार ; १५ स० जेह विरुद मोटा वहै रे, तेह करै उपगार नवमी ढाल कही भली रे, विनयचन्द्र हितकार ; १६ स०
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