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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई
बीजो को बोलै नहीं, घणी थई तिहां वार रा० तेह सरूप अलक्ष छ, पिण मंत्री करै विचार रा०५ क्रि० राजा अति आतुर थयौ, तेहने कीधी रीस रा० उत्तम तिहां कि आविनै, बोलै विसवा वीस रा० ६ कि० हुँ परदेशी छु प्रभो, तो पणि सांभलि बात रा० तुम आगलि कम राखिये, कूड़ कपट तिल मात रा० ७ कि० हुं कहिस्यूँ मति अनुसरे, अश्व तुमारो एह रा० महिषी दूध पियौ घणौ, तिण मंदी गत छह रा० ८ कि० वाई पय प्राये हवें, चंचल गति तिण नांहि रा० राय कहै वह माहरै, तुं वसीयो मन मांहि रा० ६ कि० तुं ज्ञानी तुझसुं कहुं, इण साचइ अहिनोण रा० स्या कही गुण ताहरा, तुं कोई चतुर सुजाण रा० १० कि० दूषण किम तें जाणीयौ, कुमर कदै वलि एम रा० जाणुं हयवर पारिखौ, तिण कारण कह्यो तेम रा० ११ कि० मा मूई जब एहनी, तब ए लघुतर बाल रा० पय पाई मोटो कियो, एम कहै भूपाल रा० १२ कि० इण परि चौथी ढाल में, रोभयौ चित राजान रा० विनयचंद कहै कुमर नैं, थास्यै आदर मान रा० १३ कि० ॥ दूहा || इतला दिन हुं घरि रह्यो, विण वि तुं हिज सुत माहरै, दूधे
सुत
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अति स्नेिह ;
बूठा मेह; १
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