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.. विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि मारै भागे तूं मिल्यौ, सगली बात सकज्ज ; पर उपगार शिरोमणी, सहु साधण पर कज्ज ; २ ए हय गय रथ ए सुभट, ए मंदिर ए सेज, आदरि तुं संतोष धरि, माहरो तो परि हेज ; ३ चारित्र लेवा ऊमह्यो, ज्ञानी गुरु नई पास ; तुझ आगलि तिण कारण, कहियै वचन विलास ; ४ आचारे लखीयै सही, तुं छै राजकुमार ; मन गमतो मुझ राज्य ले, मत को करे विचार ; ५
ढाल (५)
रसीयानी तब ते कुंवर कहै कर जोडि नै, तात सुणो मुझ बात, मया करि हुँ परदेशी रे कुतूहल जोइवा, नीसरियो सुविख्यात, म० १ त० हिव आगै चालीस एकलो, देखीस सकल विनोद, दया पर तुम चरणे राजन जी हुं आविसुं, मन धरि परम प्रमोद, द०२ त० इम कहि लेइ सीख सनेहीँ, ततखिण चाल्यो रे ऊठि, सुगुण नर एकलड़ौ पिण स्यौ डर तेहन, जगगुरु जेहनै रे पूठि, सु० ३ त० लांघे ग्राम नगर वहिला घणु, तिमगिरि गह्वर नीर, चतुर नर कितलाइक दिन मारग चालतो, पहुतो भरुच्छ तीर च०४ त० नगरी तणी छबि देखई सोहामणी, प्रसन थयो मन माहिं सोभागी जोवा लायक सगली जाइगा, जिण मुँकी अवगाहि सो० ५ त० तिहाँ जिनवर मुनिसुव्रत स्वामिने, देवगृह निज आय, सही वारो वार करै गुण वर्णना, मन सुद्ध प्रणमै रे पाय, स० ६ त०
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