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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई ११५ भमतो भमर तणी परै हो जी, आयौ गढ चीत्रोड़, हेजे हरखती, हेलै जिण जीता अरी होजी,
सुहड़ां सिरहर मौड़ ; ८ हे. राजा तिण नगरी तणो होजी, मछरालौ महसेन ; मानी महिपति, अछै सभा दो शुभमती होजी ;
दायक जिम सुरधेन ; ६ मा० देशां मांहे दीपतो होजी, देश वडो मेवाड़ ; राखै तसु रली, जेहनै को न सकै छली होजी,
वैरी तणो रे विभाड़; १० रा० गुणीयण जस जेहनो कहै होजी, चावो चारे खंड ; कमणा का नहीं, सरिखा छै तेहने सही होजी,
हय गय प्रबल प्रचण्ड, ११ क० अवर सहु को राजवी होजी, सीस नमावै जास, अधिक वयण अमी, ए पणि मोटा राजवी होजी,
राखै महिर उल्लास ; १२ अ० विरुओ दुर्मुख ऊपरै होजी, पिण जिन धर्म करंत ; रयण दिवस रही, समकित सुद्ध सुमति ग्रही होजी,
भजै सदा भगवंत ; १३ २० भामणि सेती भोगवै होजी, जे सुख संसारीक ; अवसर आपणी, सुत कारण सहु अवगिणी होजी,
__ माणै लाछि अलीक ; १४ अ०
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