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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपाई
१०६ जोड़ि तणी का सुद्धि नहीं, हूं अति मूढ़ अयाण । तुम सुपसाये जे कहुँ, चाढो तेह प्रमाण ॥१०॥ दान सुपात्र समो न को, मुक्ति तणो दातार । उलट धरि द्य ते तजै, सलिल निधि संसार ॥११॥ सालिभद्र आदिक उपरि, दान तणे अधिकार । जिनशासन मां जोवतां, चरते नावै पार ।।१२।। तो पणि उत्तमकुमर नौ, चरित सुणो मन रंग । साधु प्रशंसित दान जिण, दीधो आणि उमंग ॥१३॥ बात चिंत कौ मत करो, छोडो कुमति किलेस । वांचंतां कविता तणो, मन जिम थाय विशेष ।।१४।।
ढाल-(१) गौतम स्वामि समोसख्या एहनी वचन रचन सुणज्यो हिवै, आणी भाव प्रधानो रे। देज्यो दान इसी परै, जेम लहो तुमे मानो रे ॥शव० इणहिज जंबूद्वीप मां, दक्षिण भरत उदारो रे । काशी देश जिहाँ भलौ, पृथिवी नो सिणगारो रे ॥२॥व० नयरी तिहाँ वणारसी, अलिकापुरि सम तेहो रे । जहाँ सुर सरिखा मानवी, निशदिन चढते नेहो रे ॥३॥ व० वलि तेहनै चौ पाखती, विकट दुरंग विराजै रे। घण वाजिव सदा घुरै, घन गरजारव लाजै रे ।।४।। व० ऊँचा मंदिर अति घणा, दीठां आवै दायो रे। तिम चित चोरै कोरणी, जोतां दिन वहि जायो रे ॥।॥ व०
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