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विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि जाग्यउ धरम सनेह जिणंद सैं माहरउ हो लाल जि० तज्या शास्त्र मिथ्यात सूत्र जाण्यउ खरउ हो लाल सू० जिम मालती लही भृग करीरई नवि रहइ हो लाल क० ईश्वर सिर सुरगंग तजी पर नवि वहइ हो लाल त० ॥६॥ ए प्रवचन निग्रंथ तणउ जुगत बड़उ हो लाल त० साकर सेलड़ी द्राख थकी पिण मीठड़उ हो लाल थ० सी कहीयइ बहु बात 'विनयचन्द्र' इम कहइ हो लाल वि० एहना सुणिनइ भाव श्रोता अति गहगहइ हो लाल श्रो० ॥७॥
॥ इतिश्री समवायांग सूत्र स्वाध्यायः॥
(५) श्री भगवतीसूत्र सज्झाय
देशी-पंथीड़ानी पंचम अंग भगवती जाणियइ रे, जिहां जिनवर ना वचन अथाह रे हिमवंत पर्वत सेती नीकल्या रे, मानु गंगा सिन्धु प्रवाह रे ।११६० सूरपन्नती नामइ परगड़उ रे. जेहनउ छइ उद्दाम उवंग रे। सूत्र तणी रचना दरीया जिसी रे, माहिला अर्थ ते सजल तरंग रे इहां तउ सुयक्खंध एक अति भलउ रे,
एक सउ एक अध्ययन उदार रे। दस हजार उद्देशा जेहना रे,
जिहाँ कणि प्रश्न छत्तीस हजार रे ॥३॥०॥ पदतउ दोइ लाख अरथई भऱ्या रे,
परि सहस अठ्यासी जाणि रे।
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