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श्री स्वाभाविक पार्श्वनाथ स्तवनम् अलवि कह्यां स्यु होइ रे ।म०।
मन ना चिंत्या रे कारज नवि सरइ रे ॥१॥ मोह मिथ्यामति भाव रे ।म०
रचि मचि नइ घट मांहि रहइ रे । स्यु ताहरउ परभाव रे म०
विमुख न थायइ अरियण एहवा रे ॥६॥ अधिक करइ आवाज रे म01
राता माता रे हस्ती घूमता रे। ते मृगपति नइ लाज रे ।ते।
एह औखाणउ जिनजी जाणियइ रे ।।। कलिमां तु कहिवाय रे ।म०।
दरियउ रे भरियउ गुण रयणे करी रे । दुख सहु दूरि गमाय रे म०
लहिर धरउ महिर तणी हिवइ रे ॥८॥ भव जल निधि थी तारि रे ।म।
विरुद थायइ रे साचउ तउ सही रे। 'विनयचन्द्र' जलधार रे ।म।
वरसइ रे सगलइ पिण जोवइ नहीं रे ॥६॥ ॥इति श्री स्वाभाविक पार्श्वनाथ स्तवनम् ॥
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