________________
८७
ग्यारह अंग सज्झाय (२) श्री सूयगडांग सूत्र सज्झाय
देशी-रसियानी बीजउ रे अंग हिवइ सहु सांभलौ,
मनोहर श्री सूगडांग । मोरा साजन । त्रिण्हिसइ त्रेसठि पाखंडी तणउ, ।
मत खंड्यउ धरि रंग । मोरा साजन । मीठी रे लागइ वाणी जिन तणी, जागइ जेह थी रे ज्ञान ।मो०। ए वाणी मन भाणी माहरइ, मानु सुधा रे समान (मो० मी० । रायपसेणी उपांग छइ जेहनु, एतउ सूत्र गंभीर मो०। जाणइ रे अर्थ बहुश्रुत एहना, एतउ क्षीर नीरधि नुरे नीर मो०।२। एहना रे सुयक्खंध दोइ छइ सही, वलि अध्ययन नेवीस मो० उद्देशा समुद्देशा जिहां भला, संख्यायई रे तेत्रीस मो० ॥३॥ नय निक्षेप प्रमाणइ पूरिया, पद छत्रीस हजार मो०। संख्याता अक्षर पद छहड़इ, कुण लहइ एहनुं रे पार मो० ॥४॥ गमा अनंता वलि पर्याय ना, भेद अनंत जेह माहि ।मो० गुण अनंत त्रस परित कह्या वली, थावर अनंता रे ज्याँहि ।।५।। निबद्ध निकाचित जे सासय कड़ा, जिन पन्नता रे भाव ।मो०। भाखी रे सुन्दर एह परूवणा, चरण करण नी रे जाव ।।मो० ६।। करियइ भगति युगति ए सूत्रनी, निश्चय लहियइ मुक्ति ।मो०। विनयचन्द्र कहइ प्रगटइ एह थी, आतम गुण नी रे शक्ति ॥७॥
॥ इति श्री सूयगडांग सूत्र सज्झाय ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org